अब तक हम सविधान के बारे में जान चुके हैं कि संविधान का निर्माण कैसे हुआ? संविधान सभा का गठन कैसे हुआ? सविधान सभा में कौन-कौन सी समितियां थी? और संविधान की आलोचना करने वालों की वालों की क्या आधार है? संविधान की क्या-क्या विशेषताएं हैं? और हमने यह भी देखा कि भारत के संविधान में कितनी अनुसूचियां हैं? यहां तक हमने बड़ी सरल भाषा में सविधान के बारे में जाना। कल की पोस्ट में हम सविधान की प्रस्तावना के बारे में पढ़ रहे थे। आज हम बचा हुआ भाग पूरा करेंगे। आज हम सविधान की प्रस्तावना में उपयोग में लिए गए शब्दों का अर्थ समझने का प्रयास करेंगे अर्थात हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि भारत के संविधान की प्रस्तावना में यह शब्द क्यों जोड़े गए। और उनका क्या महत्व था।
भारत के संविधान की प्रस्तावना की शब्दावली
संप्रभुता
संप्रभुता का आशय यह है कि भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही भारत किसी दूसरे देश का डोमिनियन है। (डोमिनियन का अर्थ है कि भारत पर किसी दूसरे देश का शासन ) अर्थात भारत अपने मामलों पर स्वयं निर्णय ले सकता है भारत को अपने क्षेत्र के अंदर कुछ भी फेरबदल करने के लिए किसी दूसरे देश से पूछने की जरूरत नहीं है।
समाजवादी
भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद हैं। भारतीय लोकतांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य- भारतीय नागरिक के हितों के लिए काम करना अर्थात भारत के नागरिकों के बीच गरीबी, उपेक्षा, बीमारी व अवसर की समानता को बना कर रखना। दूसरे शब्दों में कहें तो लोकतांत्रिक समाजवाद का उद्देश्य नागरिकों के बीच गरीबी, उपेक्षा, बीमारी व अवसर कि असमानता को समाप्त करना जिससे हर समाज के व्यक्ति का विकास संभव हो सके।
"भारत के संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी शब्द जोड़ने से पहले Constitution में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत भी एक समाजवादी लक्षण था।"
धर्मनिरपेक्ष
भारत के संविधान की प्रस्तावना में वर्ष 1976 में संविधान के 42 वें संशोधन के द्वारा धर्मनिरपेक्ष शब्द को जोड़ा गया। धर्मनिरपेक्ष शब्द को मोटे तौर पर समझे तो इसका अर्थ है कि भारत सरकार सभी धर्मों के नागरिकों के लिए विकास के समान अवसर प्रदान करेगी अर्थात भारत सरकार किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करेगी। साथ ही भारत के नागरिकों के लिए धर्मनिरपेक्ष शब्द का अर्थ अपने धर्म के साथ दूसरों के धर्म का आदर करना है।
बंधुता
बंधुता का अर्थ हम भाईचारे की भावना से समझते हैं। preamble of indian constitution में बंधुता को भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए जोड़ा गया।
भारत के संविधान की प्रस्तावना कहती है कि बंधुता से 2 फायदे हैं। नंबर 1 हर व्यक्ति का सम्मान बढ़ेगा नंबर दो देश की एकता और अखंडता बनीं रहेगी।
नोट:- सविधान की प्रस्तावना में अखंडता शब्द संविधान के 42वां संशोधन द्वारा जोड़ा गया।
लोकतांत्रिक
लोकतंत्र दो प्रकार का होता है नंबर 1 प्रत्यक्ष लोकतंत्र और नंबर दो अप्रत्यक्ष लोकतंत्र।
प्रत्यक्ष लोकतंत्र:- इस प्रकार के लोकतंत्र में लोग अपनी शक्ति का इस्तेमाल प्रत्यक्ष रूप से करते हैं अर्थात इस प्रकार के लोकतंत्र में जब कोई भी कानून बनाना होता है तब वहां के नागरिक प्रत्यक्ष रूप से उसमें भाग लेते हैं।
अप्रत्यक्ष लोकतंत्र:- इस प्रकार के लोकतंत्र में लोग अपनी शक्ति का इस्तेमाल प्रत्यक्ष रूप से ना करके कानून बनाने के लिए सरकार में अपना प्रतिनिधि चुनकर भेजते हैं भारत में अप्रत्यक्ष लोकतंत्र हैं अर्थात राज्य के विधानसभा में एमएलए और लोकसभा के लिए एमपी जनता के प्रतिनिधि होते हैं।
गणतंत्र
एक लोकतंत्र राज व्यवस्था को दो भागों में बांटा जाता है 1) राजाशाही 2) गणतंत्र।
राजाशाही
इस प्रकार के लोकतंत्र राज व्यवस्था में देश का मुखिया उत्तराधिकारीता के माध्यम से चुनकर आता है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन कि राजव्यवस्था।
गणतंत्र
इस प्रकार की राजव्यवस्था में देश का मुखिया प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में मतदान द्वारा निश्चित समय के लिए चुना जाता है। जैसे:- अमेरिका।
भारत के संविधान की प्रस्तावना में गणराज्य शब्द का अर्थ है कि भारत का प्रमुख (राष्ट्रपति) चुनाव के जरिए सत्ता में आयेगा (5 वर्ष के लिए)
न्याय
भारत के संविधान की प्रस्तावना में न्याय के तीन रूपों को शामिल किया गया है। सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय। इनकी सुरक्षा के लिए मौलिक अधिकार व राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत दिए गए हैं।
सामाजिक न्याय:- सामाजिक न्याय का अर्थ Preamble of indian Constitution में यह है कि भारत के प्रत्येक नागरिक के साथ जाती, रंग, लिंग व धर्म के आधार पर बिना भेदभाव के सम्मान में व्यवहार किया जाएगा।
आर्थिक न्याय:- Preamble of indian Constitution में आर्थिक न्याय अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति के साथ आर्थिक आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा अर्थात किसी भी व्यक्ति के साथ गरीबी और अमीरी के आधार पर कोई नीतियां नहीं बनाई जाएगी। इसमें संपदा, आय और संपत्ति की असमानता को दूर करना भी शामिल हैं
राजनीतिक न्याय:- भारतीय संविधान में राजनीतिक न्याय का अभिप्राय है कि किसी भी व्यक्ति के साथ राजनीतिक भेदभाव नहीं किया जाएगा अर्थात सभी को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होंगे।
नोट:- सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक न्याय को भारतीय संविधान में 1917 की रूसी क्रान्ति से शामिल किया गया।
स्वतंत्रता
स्वतंत्रता का अर्थ है लोगों की गतिविधियों पर किसी प्रकार की रोक टोक नहीं तथा साथ ही हर व्यक्ति के विकास के लिए अवसर प्रदान करना।
सही मायने में स्वतंत्रता का मतलब होता है कि कोई भी व्यक्ति संविधान के नियमों कानूनो के दायरे में रहकर अपना जीवन स्वतंत्रता पूर्वक निर्वाण कर सकता है।
प्रस्तावना हर व्यक्ति के लिए मौलिक अधिकारों के जरिए अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता को सुरक्षित करती हैं इसके हनन होने पर कानून का दरवाजा खटखटाया जा सकता है प्रस्तावना में स्वतंत्रता, समता और बंधुता के आदर्शों को फ्रांस की क्रांति(1789-1799 ई. ) से लिया गया है।
समता
समता का अर्थ:-
समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेष अधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने के लिए उपबंध।
1) धर्म, लिंग, जाति और रंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति को मतदाता सूची में शामिल होने से रोका नहीं जा सकता (अनुच्छेद 325)।
2) लोकसभा और विधानसभा के लिए व्यस्क मतदान का प्रावधान (अनुच्छेद 326)।
नोट:- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत (अनुच्छेद 39) महिला और पुरुष को जीवन यापन करने के लिए पर्याप्त साधन और समान कार्य के लिए समान वेतन का अधिकार को सुरक्षित करता है।
आज हमारा संविधान की प्रस्तावना का टॉपिक कम्पलीट हो गया है आप इससे संबंधित प्रश्नो को जरूर हल करें।
मैं उम्मीद करता हूँ आपको आज का टॉपिक समझ मे आया होगा। पोस्ट के बारे में यदि आपका कोई सुझाव हो तो जरूर मेल करें। यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।
यह भी पढ़े👉
महत्वपूर्ण पोस्ट👇
0 टिप्पणियाँ