Indian constitution in hindi | भारत के संविधान की विशेषताएं | bharat ke snvidhan ki visheshta

भारतीय संविधान की मूलभूत विशेषता, भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताओं का परीक्षण कीजिए, संविधानवाद की विशेषताएं, संविधान की परिभाषा, ब्रिटिश संविधान की विशेषता, भारतीय संविधान की धाराएं

अब तक हम सविधान की 06 पोस्टओ को पढ़ चुके है। इन पोस्टओ में हम पढ़ चुके है कि भारत के संविधान की पृष्ठभूमि क्या थी? संविधान का निर्माण कैसे हुआ? संविधान सभा का गठन कैसे हुआ? संविधान की आलोचना का आधार क्या था? संविधान सभा की समितियो के बारे में पढ़ा और कुछ संविधान की विशेषताएं भी पढ़ चुके हैं। आज हम संविधान की विशेषताओ का बचा हुआ भाग पढेंगे यदि आपने पिछली पोस्ट नही पढ़ी है तो मैं उस पोस्ट की लिंक इस पोस्ट के निचे दे रहा हूँ। आप पहले वो पोस्ट पढ़ ले ताकि आपको यह पोस्ट अच्छे से समझ मे आये।

09. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत

क) राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्त आयरलैंड से लिया गया है।

ख) संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों का उल्लेख भाग 4 में किया गया है।

ग) राज्य के नीति निदेशक तत्व को मोटे तौर पर तीन भागों में विभाजित किया गया है :- सामाजिक, गांधीवाद तथा उदार बौद्धिक।

घ) राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के माध्यम से संविधान ने राज्यों को शक्तियां प्रदान की है जिसके तहत राज्य अपने  क्षेत्र में समाज के कल्याण के लिए कानून बनाएगा।  उदाहरण के लिए भारत के स्वतंत्र होने के बाद राज्यों ने भूमि सुधार नियम बनाएं तथा अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजाति के लोगो की शिक्षा का स्तर सुधारने के लिए उनको आरक्षण प्रदान किया अतः हम यह कह सकते हैं कि राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत का उद्देश्य भारत के राज्यों को कल्याणकारी राज्य  बनाना है

10. मौलिक कर्तव्य

संविधान में मौलिक कर्तव्य को स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिश के आधार पर संविधान के 42 वें संशोधन में 1976  में शामिल किया गया।

मौलिक कर्तव्य में यह बताया गया की भारत का प्रत्येक नागरिक भारत के संविधान, भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारत का राष्ट्रीय गीत तथा भारत के राष्ट्रीय गान का आदर करेगा अर्थात भारत के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी बनेगी कि वह भारत के राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रीय गीत, राष्ट्रीय गान तथा संविधान का सम्मान करें जिससे भारत की संप्रभुता एकता और अखंडता की रक्षा करने में सहायता मिले।

मौलिक कर्तव्यों को संविधान में शामिल करने का प्रमुख उद्देश्य भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने समाज के प्रति तथा अपने देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी का अहसास कराना हैं।


11. धर्मनिरपेक्ष राज्य

भारत के संविधान में धर्मनिरपेक्ष शब्द वर्ष 1976 में संविधान के 42 वें संविधान संशोधन के तहत जोड़ा गया।

धर्मनिरपेक्ष को संविधान में परिभाषित तो नहीं किया गया है  लेकिन इसका आशय यह माना जाता है कि भारत के क्षेत्र में रहने वाले किसी भी नागरिक के साथ धर्म के आधार पर सरकार भेदभाव नहीं करेगी अर्थात भारत सरकार  सभी धर्मों के सदस्यों के लिए समान नीतियां बनाएंगी तथा समान अवसर प्रदान करेगी तथा साथ ही यह भी माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने धर्म के साथ दूसरे के धर्म का भी आदर करेंगे।

मोटे तौर पर कहा जाए तो धर्मनिरपेक्ष शब्द को संविधान में जोड़ने का उद्देश्य यह स्पष्ट करना था कि भारत संघ का कोई विशेष धर्म नहीं है इस क्षेत्र में किसी भी धर्म का इंसान रह सकता है

12. सार्वभौम व्यस्क मताधिकार

भारत के स्वतंत्र होने से पहले ब्रिटिश शासन के समय कुछ ही लोगों को अपना मतदान करने का अधिकार था लेकिन भारत के स्वतंत्र होने के बाद भारत के सभी नागरिकों को अपना मतदान देने का अधिकार दिया गया।

शुरुआत में भारत के वह नागरिक मतदान कर सकते थे जिनकी उम्र 21 वर्ष ऊपर थी लेकिन वर्ष 1989 में संविधान के 61 वें संशोधन के माध्यम से उम्र सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई वर्तमान में भारत का वो नागरिक जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है बिना किसी भेद-भाव (रंग, जाति, लिंग व धर्म के आधार पर) मतदान करके सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है

13. एकल नागरिकता

भारतीय संविधान के तहत भारत में दै्वध शासन प्रणाली अपनाई जाती है अर्थात केंद्र में सरकार बनाने के लिए सभी   राज्यों के नागरिक  मतदान करते हैं और हर राज्य में सरकार बनाने के लिए केवल उसी राज्य में चुनाव करवाए जाते हैं दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि भारत के केंद्र में केंद्र सरकार द्वारा शासन तथा राज्य में राज्य सरकार द्वारा शासन चलाया जाता है इसके बावजूद भारत के हर नागरिक की एक ही नागरिकता है जिसे हम भारतीय नागरिकता कहते हैं।

अमेरिका में हर व्यक्ति के पास दो नागरिकता होती है। एक तो अमेरिका की नागरिकता तथा दूसरी जिस राज्य में रह रहे हैं उस राज्य की नागरिकता।

14. स्वतंत्र निकाय

भारत का संविधान केवल कार्यपालिका, विधायिका व सरकार को ही शक्तियां नहीं प्रदान करता। बल्कि कुछ स्वतंत्र निकायओ का भी गठन किया जैसे:- सरकार का चुनाव करवाने के लिए निर्वाचन आयोग, सिविल सेवकों की भर्ती करवाने के लिए संघ लोक सेवा आयोग 

15. आपातकालीन प्रावधान

भारत के संविधान में तीन प्रकार के आपात काल की विवेचना की गई है।

क) राष्ट्रीय आपातकाल:-

राष्ट्रीय आपातकाल युद्ध, आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह के द्वारा उत्पन्न कोई अशांति  की अवस्था में लगाया जा सकता है।

ख) राज्य आपातकाल:-

राज्य आपातकाल सवैधानिक तंत्र की विफलता अथवा केंद्र के आदेशों का उल्लंघन करने पर राष्ट्रपति द्वारा लगाया जाता है। राज्य आपातकाल को राष्ट्रपति शासन के नाम से भी जानते हैं।

ग) वित्तीय आपातकाल:- 

यह आपातकाल भारत क्षेत्र में वित्तीय संकट आने पर लगाया जा सकता है। भारत के स्वतंत्र होने के बाद अभी तक वित्तीय आपातकाल नहीं लगाया गया है।

16. त्रिस्तरीय सरकार

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जिसमें त्रिस्तरीय सरकार का प्रावधान किया गया है।

i) वर्ष 1993 सविधान के 73वें संशोधन के माध्यम से पंचायत राज का गठन किया गया। इसके तहत पंचायत का मुखिया के लिए चुनाव शुरू हुआ।

ii)वर्ष 1994 में सविधान के 74 में संशोधन संशोधन के माध्यम से नगरों में नगर पालिका का गठन किया गया इसके तहत नगर पालिका का मुखिया का चुनाव शुरू हुआ।

आज हमारा टॉपिक संविधान की विशेषताएं कंप्लीट हो गया है। सविधान के कुछ विशेषताएं हमने पिछली पोस्ट में पढ़ती थी यदि आपने अभी तक वो पोस्ट नहीं पढ़ा है तो पहले उस पोस्ट को पढ़ ले। उसके बाद यह पोस्ट आपको अच्छे से समझ में आ जायेगा।


मैं उम्मीद करता हूँ आपको आज का टॉपिक समझ मे आया होगा। पोस्ट के बारे में यदि आपका कोई सुझाव हो तो जरूर मेल करें। यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।