भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31, जैसा कि वह मूल रूप से था, संपत्ति के अधिकार के साथ संबंधित था। हालांकि, इसे 1978 में 44वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा रद्द किया गया और उसे बदल दिया गया। 


भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31


1. "संपत्ति का अधिग्रहण: (1) धारा 13 में कुछ भी संविदित न होने के बावजूद, राज्य द्वारा किसी किस्म के कोई भी उपनिवेश का अधिग्रहण या उसमें किसी अधिकार का समापन या संशोधन, या किसी समय सीमित अवधि के लिए किसी संपत्ति के प्रबंधन का राज्य द्वारा हो जाना, या सार्वजनिक हित में या संपत्ति के उचित प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए, या दो या दो से अधिक कॉर्पोरेशनों के सम्मिलन, सार्वजनिक हित में या निर्माण के उचित प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए, या प्रबंधकीय एजेंट, सचिव और कोषाध्यक्षों, प्रबंधन निदेशकों, निदेशकों या कॉर्पोरेशनों के प्रबंधकों के किसी अधिकारों का समापन या संशोधन, यह माना जाएगा कि यह धारा 14 या धारा 19 द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकारों के साथ असंगत है, या किसी अधिकार को हटा लेता है या काटता है। इनमें से कोई भी।"


2. सरल शब्दों में, अनुच्छेद 31 ने राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों, जैसे विकास, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं, या उद्योगों की राष्ट्रीयकरण के लिए संपत्ति का अधिग्रहण करने की अनुमति दी। राज्य को संपत्ति का प्रबंधन भी सीमित अवधि के लिए ले सकता था या कॉर्पोरेशनों को सम्मिलित कर सकता था। हालांकि, यह शक्ति असीमित नहीं थी, और राज्य को यह सुनिश्चित करना था कि अधिग्रहण या प्रबंधन न्यायसंगत और न्यायसंगत तरीके से किया जाता है, बिना व्यक्तियों या कॉर्पोरेशनों के अधिकारों का उल्लंघन किये।


3. 1978 में 44वां संविधान संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद 31 को रद्द किया और इसे अनुच्छेद 300A के साथ बदल दिया, जिसमें कहा गया है: "विधि की अधिकारिता के बिना संपत्ति को छीना नहीं जा सकता:  यह नई अनुच्छेद संपत्ति के अधिकारों के मामले में उचित प्रक्रिया और कानून के महत्व को जोर देती है।


4. अनुच्छेद 31 की रद्दी और अनुच्छेद 300A के प्रस्तावना ने भारत में संपत्ति के अधिकारों के प्रति दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का संकेत दिया। जबकि मूल अनुच्छेद 31 लोगों को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति प्राप्त करने की अनुमति देता था, तो नई अनुच्छेद 300A व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा को जोर देती है और सुनिश्चित करती है कि राज्य व्यक्तियों की संपत्ति को विधि की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अनियमित रूप से छीन नहीं सकता।


अनुच्छेद 31 की कुछ महत्वपूर्ण बातें:


- रद्द किया और पुनः स्थापित: 1978 में 44वां संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से अनुच्छेद 31 को रद्द किया गया और उसे अनुच्छेद 300ए के द्वारा पुनः स्थापित किया गया।

मूल उद्देश्य: अनुच्छेद 31 ने राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति प्राप्त करने की अनुमति दी, जैसे कि विकास, बुनियादी परियोजनाएं, या उद्योगों की राष्ट्रीयकरण।

- सीमाएँ: राज्य की संपत्ति प्राप्ति की शक्ति असीमित नहीं थी, और उसे यह सुनिश्चित करना था कि प्राप्ति न्यायसंगत और न्यायसंगत ढंग से हो, व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन न करते हुए।

- उचित प्रक्रिया: अनुच्छेद 300ए में उचित प्रक्रिया और कानून के मामले में संपत्ति के अधिकारों के महत्व को जोरदार रूप से दिया गया है।

- व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षण: अनुच्छेद 300ए सुनिश्चित करता है कि राज्य व्यक्तियों को विधि की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उनकी संपत्ति को अनियमित रूप से छीन नहीं सकता।

- प्रकार में परिवर्तन: अनुच्छेद 31 की रद्दी और अनुच्छेद 300ए के प्रस्तावना ने भारत में संपत्ति के अधिकारों के प्रति एक महत्वपूर्ण परिवर्तन की सूचना दी, राज्य प्राप्ति के ऊपर व्यक्तिगत अधिकारों को प्राथमिकता देने के लिए।

- संविधानिक संशोधन: यह परिवर्तन संविधानिक संशोधन के माध्यम से किया गया था, भारतीय संविधान में संपत्ति के अधिकारों की महत्व को हाइलाइट करते हुए।

- न्यायिक व्याख्या: अदालतों ने संपत्ति के अधिकारों को व्याख्या और संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, सुनिश्चित करते हुए कि राज्य व्यक्तियों को उनकी संपत्ति को अनियमित रूप से छीने में नहीं प्रवृत्त हो।

निष्कर्ष:


भारतीय संविधान की अनुच्छेद 31, जैसा कि यह मूल रूप से थी, संपत्ति के अधिकारों को संबोधित करती थी और राज्य को सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए संपत्ति प्राप्त करने की अनुमति देती थी। हालांकि, इसे रद्द कर दिया गया और अनुच्छेद 300ए द्वारा बदल दिया गया, जो व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा को जोर देता है और सुनिश्चित करता है कि राज्य व्यक्तियों की संपत्ति को विधि की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना अनियमित रूप से छीन नहीं सकता।


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