Preamble of Indian Constitution | bharatiy snvidhan ki prastavana | indian constitution in hindi, indian constitution, bhartiy snvidhan

Preamble of Indian Constitution | bharatiy snvidhan ki prastavana | indian constitution in hindi


अब तक हमने indian constitution के बारे में जान चुके हैं कि constitution का निर्माण कैसे हुआ? सविधान सभा का गठन कैसे किया गया? संविधान सभा में कौन-कौन सी समितियां थी? संविधान की आलोचनाओं का आधार क्या है? हमने यह भी जाना कि संविधान की क्या-क्या विशेषताएं हैं? भारतीय संविधान का स्रोत क्या थे? और लास्ट में हमने यह भी देखा था कि भारत के संविधान में कितनी अनुसूचियां हैं और हमने बड़ी ही सरल भाषा में सविधान के अनुसूचियां को समझा यदि आपने पिछली पोस्टओ को नहीं पढ़ा है तो मैं आपसे अनुरोध करूंगा कि आप पहले उन पोस्ट कर ले ताकि आपको यह पोस्ट अच्छे से समझ में आये।



Indian Constitution की प्रस्तावना को दो भागों में पढेंगे।

आज हम इस पोस्ट में Indian Constitution की प्रस्तावना के बारे में जानेगे। हम पूरी प्रस्तावना को देखेंगे। हम यह भी जानेंगे कि प्रस्तावना का महत्व क्या है? प्रस्तावना हमें क्या कहती हैं? प्रस्तावना के बारे में सविधान निर्माताओं का क्या मानना था। प्रस्तावना के बारे में उच्चतम न्यायालय का क्या मानना है?



Indian Constitution की प्रस्तावना की दूसरी पोस्ट में हम संविधान की प्रस्तावना में उपयोग में लिए गए शब्दों के बारे में जानेंगे।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना (Preamble of Indian Constitution):- 


भारतीय संविधान की प्रस्तावना जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया उद्देश्य प्रस्ताव पर आधारित है।


सर्वप्रथम अमेरिका के संविधान में प्रस्तावना को जोड़ा गया था।

प्रस्तावना👇

हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी,  धर्मनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए, दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।


Indian Constitution की प्रस्तावना का महत्व:-


1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना पढ़ने पर भारत के संपूर्ण संविधान की झलक मिल जाती है अर्थात भारत के संविधान की प्रस्तावना में सविधान के मुख्य शब्दों को चुनकर जोड़ा गया है


2. सविधान की प्रस्तावना से पता चलता है की भारत की प्रकृति कैसी है? भारत में रहने वाले लोग कैसे हैं? भारत के संविधान की प्रकृति कैसी है? तथा सबसे महत्वपूर्ण भारत के संविधान की प्रस्तावना में भारत के नागरिकों के अधिकारों के बारे में पता चलता है।

भारत के संविधान की प्रस्तावना क्या कहती है:-


भारत के संविधान की प्रस्तावना निम्न बातें कहती है:-


1. संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत के नागरिकों को 5 तरह की स्वतंत्रता प्रदान की गई है:- विचार, अभिव्यक्ति, धर्म, विश्वास और उपासना।


2. संविधान की प्रस्तावना के अनुसार भारत के नागरिकों को तीन तरह का न्याय प्रदान किया गया है:- सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय एवं राजनीतिक न्याय।

3. संविधान की प्रस्तावना हमें बताती है कि भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 मे बनकर तैयार हो गया था।

विद्वानों ने indian constitution की प्रस्तावना के बारे में क्या कहा:- 


क) संवैधानिक विशेषज्ञ एन. ए. पलक़ीवाला ने संविधान की प्रस्तावना को constitution का परिचय पत्र कहा।


ख) प्रारूप समिति के सदस्य के. एम. मुंशी के अनुसार प्रस्तावना हमारी संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य का भविष्यफल है।

ग) पंडित ठाकुर दास भार्गव ने constitution की प्रस्तावना को सम्मानित भाग, संविधान की आत्मा, संविधान की कुंजी और आभूषण की संज्ञा दी।

घ) सुप्रसिद्ध अंग्रेज राजनीति शास्त्री सर अर्नेस्ट वर्कर ने indian Constitution की प्रस्तावना लिखने वालों को बुद्धिजीवी कहा।

Indian Constitution की प्रस्तावना के बारे में उच्चतम न्यायालय:-


1. बेरू वाड़ी संघ मामले में उत्तम न्यायालय ने कहा कि संविधान की प्रस्तावना केवल संविधान निर्माताओं के मस्तिष्क की कुंजी है।

2. ऐतिहासिक केस (केशवानंद भारती) पर टिप्पणी करते हुए 1973 में उच्चतम न्यायालय ने संविधान की प्रस्तावना को सविधान का अति महत्वपूर्ण हिस्सा माना।

3. 1995 में एलआईसी ऑफ इंडिया मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना indian constitution  का आंतरिक हिंसा है।

Constitution की प्रस्तावना में संशोधन की संभावना:-


ऐतिहासिक केस (केसवानंद भारती) में एक सवाल उठ कर सामने आया कि क्या प्रस्तावना को अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है? इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। अर्थात प्रस्तावना में संविधान का ढांचा निर्धारित करती है।अतः उच्चतम न्यायालय ने यह साफ कर दिया कि प्रस्तावना को संशोधित नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रस्तावना का मूल ढांचा यदि परिवर्तित किया गया तो भारत के संविधान का उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। लेकिन "1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं अखंडता को जोड़ा गया" बाद में इस संशोधन को वैध ठहराया गया।


आज की पोस्ट में इतना ही आगे की पोस्ट में हम संविधान की प्रस्तावना में प्रयोग हुवे शब्दों के बारे चर्चा करेंगे।

मैं उम्मीद करता हूँ आपको आज का टॉपिक समझ मे आया होगा। पोस्ट के बारे में यदि आपका कोई सुझाव हो तो जरूर मेल करें। यदि आपको यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट को अपने दोस्तों के साथ जरूर शेयर करे।