परीक्षा में आये हुवे प्रशन | history gk question answer in hindi | padhai krte rho

 
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कालीबंगा

कालीबंगा, भारत के उत्तर-पश्चिम स्थित राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले का एक प्रागैतिहासिक स्थल है। घग्घर नदी के तट पर स्थित इस प्राचीन स्थल की खुदाई 1960-69 के बीच पुरातत्वविद बी.के. थापड़ और बी.बी लाल द्वारा कराई गई , जबकि इस स्थल की खोज 1952 में अमलानंद घोष ने की थी। कहा जाता है, यहां हड़प्पाकालीन संस्कृति से जुड़े कई प्राचीन अवशेष मिले हैं। लगभग 34 साल तक चली खुदाई के बाद, 2003 में 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा इस स्थल की उत्खनन रिपोर्ट प्रकाशित की गई, जिसमें कहा गया है, कि 'कालीबंगा', उस समय के सबसे समृद्ध नगर हडप्पा की प्रादेशिक राजधानी हुआ करता था।

मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा भवन

मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा भवन | पढ़ाई करते रहो

मोहन जोदड़ो पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं। मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम बृहत्स्नानागार है और अंग्रेजी में Great Bath. ये शहर अक़वाम मुतहदा के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त युनीसको की जानिब से आलमी विरसा दिए क़रार गए मुक़ामात में शामिल हुए। मोहनजोदड़ो का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्थल विशाल स्नानागार है। इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण 55 मीटर तथा चौड़ाई पूर्व से पश्चिम 33 मीटर है। इसके मध्य में स्थित स्नानकुण्ड की लम्बाई 11.8 मीटर, चौड़ाई 7.04 मीटर तथा गहराई 2.43 मीटर है। सम्भवतः इसका उपयोग सार्वजनिक रूप से धर्मानुष्ठान सम्बन्धी स्नान के लिए होता था।

वैदिक सभ्यता के निर्माता

वैदिक सभ्यता के निर्माता | padhai krte rho
वैदिक सभ्यता के संस्थापक आर्य थे। आर्यों का आरंभिक जीवन मुख्यतः पशुचारण था। वैदिक सभ्यता मूलतः ग्रामीण थी।
वैदिक सभ्यता की जानकारी के स्रोत वेद हैं। इसलिए इसे वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है।
आर्यों ने ऋग्वेद की रचना की, जिसे मानव जाती का प्रथम ग्रन्थ माना जाता है। ऋग्वेद द्वारा जिस काल का विवरण प्राप्त होता है उसे ऋग्वैदिक काल कहा जाता है।
ऋग्वेद भारत-यूरोपीय भाषाओँ का सबसे पुराना निदर्श है। इसमें अग्नि, इंद्र, मित्र, वरुण, आदि देवताओं की स्तुतियाँ संगृहित हैं।

सर्वप्रथम घोड़े का अवशेष

सर्वप्रथम घोड़े का अवशेष

सिंधु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है तथा  अब तक की ज्ञात सभ्यताओं में सबसे प्राचीन सभ्यता माना जाता है.एक ऐसी  सभ्यता जिसकी खोज 1921 में हुई. जो 2500  ईसा पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक  रही तथा 1500 ईसापूर्व के आसपास इस सभ्यता का पतन हो गया। सुरकोटदा या 'सुरकोटडा' गुजरात के कच्छ ज़िले में स्थित है। इस स्थल से सिंधू घाटी की सभ्यता के विस्तार के प्रमाण मिले हैं। यहां घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी क़ब्रगाह मिली है।

हड़प्पा की खोज

1826 में चार्ल्स मैसेन ने पहली बार इस पुरानी सभ्यता को खोजा। कनिंघम ने 1856 में इस सभ्यता के बारे में सर्वेक्षण किया। 1856 में कराची से लाहौर के मध्य रेलवे लाइन के निर्माण के दौरान बर्टन बंधुओं ने हड़प्पा स्थल की सूचना सरकार को दी। इसी क्रम में 1861 में एलेक्जेंडर कनिंघम के निर्देशन में भारतीय पुरातत्व विभाग की स्थापना की। 1902 में लार्ड कर्जन द्वारा जॉन मार्शल को भारतीय पुरातात्विक विभाग (ASI) (Archaeological Survey of India) का महानिदे।.शक बनाया गया। फ्लीट ने इस पुरानी सभ्यता के बारे में एक लेख लिखा। 1921 में दयाराम साहनी ने हड़प्पा का उत्खनन किया। इस प्रकार इस सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता रखा गया व दयाराम साहनी को इसका खोजकर्ता माना गया। यह सभ्यता सिन्धु नदी घाटी में फैली हुई थी इसलिए इसका नाम सिन्धु घाटी सभ्यता रखा गया।

मोहनजोदड़ो का दूसरा नाम

इसके ध्वंशावशेष पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त के लरकाना जिले में सिन्धु नदी के दाहिने किनारे पर प्राप्त हुए। यह क्षेत्रफल की दृष्टि से सिन्धु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था, जो 250 हेक्टेयर में बसा था। इसकी जनसंख्या भी सर्वाधिक थी। मोहनजोदड़ो का शाब्दिक अर्थ होता है-मृतकों या प्रेतों का टीला। इसे "सिन्धु का बाग" भी कहा जाता है। मोहनजोदड़ो की खोज 1922 में राखाल दास बनर्जी ने की।मोहनजोदड़ो के दुर्ग टीले को स्तूप टीला भी कहते हैं क्योंकि इस टीले पर कुषाण शासकों ने एक स्तूप का निर्माण करवाया था। 

हड़प्पा सभ्यता के बर्तन

हड़प्पा सभ्यता के बर्तन

यद्यपि इस युग के लोग पत्थरों के बहुत सारे औजार तथा उपकरण प्रयोग करते थे पर वे कांसे के निर्माण से भली भांति परिचित थे। तांबे तथा टिन मिलाकर धातुशिल्पी कांस्य का निर्माण करते थे। हालांकि यहां दोनो में से कोई भी खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध नहीं था। सूती कपड़े भी बुने जाते थे। लोग नाव भी बनाते थे। मुद्रा निर्माण, मूर्ति का निर्माण के साथ बरतन बनाना भी प्रमुख शिल्प था। हड़प्पा सभ्यता में लाल रंग के बर्तन बनाये जाते थे तथा उन पर काले रंग से कलाकारी की जाती थी।

सिंघु घाटी सभ्यता की फसल

सिंघु घाटी सभ्यता के लोग गेहूँ उपजाया करते थे जो रोटी बनाने के काम आता था. गेहूँ की दो प्रजातियाँ थीं जिन्हें आज वैज्ञानिक भाषा में ट्रिटीकम कम्पेक्ट और स्फरोकोकम कहा जाता है. जौ की दो प्रजातियाँ थीं – होरडियम बल्गैर और हैक्सस्टिकम। गेहूँ और जौ तो सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के मुख्य खादान्न थे ही, वे खजूर, सरसों, तिल और मटर भी उगाते थे. सरसों तथा तिल की खेती मुख्य रूप से तेल के लिए करते रहे होंगे. वे राई भी उपजाते थे. हड़प्पा में तरबूज के बीज मिले।

रंगपुर सभ्यता

रंगपुर सभ्यता | padhai krte rho

रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में सुकभादर नदी के समीप स्थित है। इस स्थल की खुदाई वर्ष 1953-1954 में ए. रंगनाथ राव द्वारा की गई थी। यहाँ पर पूर्व हड़प्पा कालीन संस्कृति के अवशेष मिले हैं। रंगपुर से मिले कच्ची ईटों के दुर्ग, नालियां, मृदभांड, बांट, पत्थर के फलक आदि महत्त्वपूर्ण हैं। यहाँ धान की भूसी के ढेर मिले हैं।


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