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श्रीनगर की स्थापना

श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर प्रान्त की राजधानी है। कश्मीर घाटी के मध्य में बसा यह नगर भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से हैं। श्रीनगर एक ओर जहां डल झील के लिए प्रसिद्ध है वहीं दूसरी ओर विभिन्न मंदिरों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
श्रीनगर जिला कारगिल के उत्तर, पुलवामा के दक्षिण, बुद्धगम के उत्तर-पश्चिम के बगल में स्थित है। कमल के फूलों से सजी रहने वाली डल झील पर कई ख़ूबसूरत नावों पर तैरते घर भी हैं जिनको हाउसबोट कहा जाता है। इतिहासकार मानते हैं कि श्रीनगर मौर्य सम्राट अशोक द्वारा बसाया गया था।

पुरंदर की संधि

पुरंदर की संधि 11 जून 1665 को हुई। यह मराठा और मुगलों के बीच हुई। इसमें मुगलों की तरफ से जयसिंह प्रथम थे। इसके बाद शिवाजी को अपने कई किले मुगलों को देने पड़े।

पुरंदर संधि की शर्ते

अंग्रेजों ने राघोबा के लिए जो रकम खर्च की है, उसके लिए मराठा अंग्रेजों को 12 लाख रुपये देंगे।
सूरत की संधि को रद्द कर दिया गया।मराठों ने राघोबा को 3लाख 15हजार रुपये वार्षिक पेंशन देना स्वीकार कर लिया।राघोबा अब कोई सेना नहीं रखेगा तथा गुजरात में कोपरगाँव में जाकर बस जायेगा।युद्ध में अंग्रेजों ने जो क्षेत्र प्राप्त किये हैं वे अंग्रेजों के पास ही रहेंगे।

किस मुगल शासक का राज्याभिषेक दो बार हुआ

औरंगजेब का राज्याभिषेक दो बार हुआ था, पहला राज्याभिषेक 31 जुलाई, 1658 ई. में तथा दूसरा राज्याभिषेक 15 जून, 1659 ई.। अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर औरंगज़ेब या आलमगीर (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था भारत पर राज्य करने वाला छठा मुग़ल शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने भारतीय उपमहाद्वीप पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो अकबर के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था।

सिंधु घाटी सभ्यता में सबसे पहले किस स्थल की खोज की गई

यह इन्दुस या इन्डस नदी के किनारे बसने वाली सभ्यता थी और अपनी भौगौलिक उच्चारण की भिन्नताओं की वजहों से इस इन्डस को सिन्धु कहने लगे, आगे चल कर इसी से यहां के रहने वाले लोगो के लिये हिन्दू उच्चारण का जन्म हुआ। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से इस सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। अतः विद्वानों ने इसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम दिया, क्योंकि यह क्षेत्र सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में आते हैं, पर बाद में रोपड़लोथलकालीबंगा, वनमाली, रंगापुर आदि क्षेत्रों में भी इस सभ्यता के अवशेष मिले जो सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे। अतः कई इतिहासकार इस सभ्यता का प्रथम स्थल हड़प्पा होने के कारण इस सभ्यता को "हड़प्पा सभ्यता" नाम देना अधिक उचित मानते समझा गया जबकि हकीकत में इस नदी का नाम अन्दुस है।

हड़प्पा कहाँ पर स्थित है

हड़प्पा पूर्वोत्तर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। यह साहिवाल शहर से २० किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। सिन्धु घाटी सभ्यता के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं। हड़प्पा रावी नदी के किनारे स्थित हैं। तथा इस स्थल की खोज सबसे पगले दयाराम साहनी द्वारा की गई थी।

मोहनजोदड़ो की खोज

मोहनजोदड़ो की खोज प्रसिद्ध इतिहासकार राखलदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी. राखलदास बनर्जी का जन्म मुर्शिदाबाद में 12 अप्रैल 1885 को हुआ था. दरअसल, उनका नाम राखलदास वंद्योपाध्याय है, पर लोग उन्हें आर. डी. बैनर्जी के नाम से बुलाते हैं। कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में पढ़ाई करते हुए उनकी मुलाकात हरप्रसाद शास्त्री तथा बंगला लेखक श्री रामेंद्रसुंदर त्रिपाठी और फिर तत्कालीन बंगाल सर्किल के पुरातत्व अधीक्षक डॉ. ब्लॉख से हुई।

लोथल किस नदी के किनारे बसा 

लोथल गोदी जो कि विश्व की प्राचीनतम ज्ञात गोदी है, सिंध में स्थित हड़प्पा के शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच बहने वाली साबरमती नदी की प्राचीन धारा भोगवा के द्वारा शहर से जुड़ी थी, जो इन स्थानों के मध्य एक व्यापार मार्ग था। उस समय इसके आसपास का कच्छ का मरुस्थलअरब सागर का एक हिस्सा था। प्राचीन समय में यह एक महत्वपूर्ण और संपन्न व्यापार केंद्र था जहाँ से मोती, जवाहरात और कीमती गहने पश्चिम एशिया और अफ्रीका के सुदूर कोनों तक भेजे जाते थे। मनकों को बनाने की तकनीक और उपकरणों का समुचित विकास हो चुका था और यहाँ का धातु विज्ञान पिछले 4000 साल से भी अधिक से समय की कसौटी पर खरा उतरा था।

सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार पूर्व से पश्चिम

सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार उत्तर में कश्मीर (मांडा) से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक तथा पश्चिम में सुतकागेंडोर से लेकर पूर्व में आलमगीरपुर (मेरठ) तक था। सिंधु घाटी सभ्यता का भौगोलिक विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किमी.।

मोहनजोदड़ो किस नदी के किनारे बसा

मोहनजोदड़ो ''सिंधु नदी''  के किनारे स्थित है। मोहनजोदड़ो की खोज प्रसिद्ध इतिहासकार राखलदास बनर्जी ने 1922 ई. में की थी ।मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " मुर्दों का टीला "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर ज़िले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले।

सिंधु घाटी सभ्यता का क्षेत्रफल


सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा के किनारे तक और पश्चिम में बलूचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर पूर्व में मेरठ तक था। सिंधु सभ्यता का क्षेत्रफल 12,99,600 वर्ग किलोमीटर तथा अकार त्रिभुजाकार था। हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता का नाम इसके प्रमुख नगर मोहनजोदड़ो की खुदाई के कारण मिला. क्योंकि मोहनजोदड़ो की खुदाई सिंधु नदी के किनारे हुई थी. इसी सिंधु नदी के कारण इसे सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाने लगा।


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