भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संरक्षित करने और समाज में सामाजिक न्याय और समानता को सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी है। यह अनुच्छेद विभिन्न धार्मिक, सामाजिक, और आर्थिक परिस्थितियों में विचलित होने वाले नागरिकों के अधिकारों को प्रतिष्ठित करता है।
अनुच्छेद 15 में क्या हैं -
इस अनुच्छेद में, पहले तो, नागरिकों को उनके धर्म, धार्मिक विश्वास, अभिवासन, और संबंधों की स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व किया गया है। यह मानवीय और धार्मिक स्वतंत्रता की मौलिक अधिकार है जिसे संविधान ने सुरक्षित किया है।
दूसरे, इस अनुच्छेद में समानता के साथ नागरिकों के लिए समान अवसर का उल्लेख किया गया है। यहाँ जाति, लिंग, धर्म, क्षेत्र, या जन्म के आधार पर किसी भी व्यक्ति के प्रति भेदभाव को नहीं किया जाना चाहिए।
तीसरे, इस अनुच्छेद में न्यायप्रणाली में न्याय की गारंटी का वर्णन किया गया है। हर व्यक्ति को अपने विधिक अधिकारों का उपयोग करने का अधिकार है और उसे न्याय के लिए उचित समय पर उचित अदालत में पहुंचने का अधिकार है।
चौथे, इस अनुच्छेद में समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों के सदस्यों की सुरक्षा के लिए प्रावधान है। यह मानवीय और सामाजिक सुरक्षा को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 15 के तहत उच्चतम शिक्षा का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार साक्षरता को बढ़ावा देता है और हर व्यक्ति को उच्च शिक्षा की पहुंच के लिए उचित अवसर प्रदान करता है।
अनुच्छेद 15 का प्राथमिक उद्देश्य सामाजिक न्याय, समानता, और सामाजिक सुधार को सुनिश्चित करना है। इसे समाज के विभिन्न वर्गों और समुदायों के बीच न्याय, समानता, और सामाजिक भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसके अंतर्गत, नागरिकों को उनके अधिकारों की सुरक्षा और संरक्षण की गारंटी दी गई है, जिससे समाज में न्याय, समानता, और सामाजिक समृद्धि का विकास हो।
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