जहांगीर के मकबरे का निर्माण करवाने की सोच किसकी थी?
जहाँगीर का मकबरा लाहौर के बाहरी इलाके में शाहदरा नामक स्थान पर स्थित है। इस जगह को उनकी कब्र के लिए इसलिए चुना गया था क्योंकि जहाँगीर इस शहर में रहते थे और वे अपनी पत्नी नूरजहाँ के साथ प्यार में थे। जहाँगीर की मृत्यु के बाद उनके शव को दिलकुशन गार्डन में दफनाया गया था। लेकिन बाद में उनके बेटे ने अपने पिता के सम्मान में मकबरा बनवाने का सोचा। इतिहासकार इसे शाहजहाँ का उद्यम कहते हैं लेकिन वास्तव में यह मकबरा जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ की सोच थी। इतिहास से पता चलता है कि नूरजहाँ ने अपने पिता इतमाद-उद-दौला के मकबरे से प्रेरणा ली और 1627 में जहाँगीर के मकबरे के डिजाइन का विचार दिया।
बीरबल के बचपन का नाम क्या था?
महेश दास, (1528-1586) जो बीरबल के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं, मुगल बादशाह अकबर के दरबार में प्रमुख वज़ीर और अकबर के परिषद के नौ सलाहकारों (नवरत्नों) में से एक थे। उनका जन्म भट्टराव परिवार में हुआ था वह बचपन से ही तीव्र बुद्धि के थे। प्रारम्भ में ये पान का सौदा बेचते थे। जिसे सामान्यतः "पनवाड़ी" (पान बेचने वाला) कहा जाता है। बचपन में उनका नाम महेश दास था। उनकी बुद्धिमानी के हजारों किस्से हैं जो बच्चों को सुनाए जाते हैं। माना जाता है कि 1586 में अफगानिस्तान के युद्ध के अभियान में एक बड़ी सैन्य मंडली के नेतृत्व के दौरान बीरबल की मृत्यु हो गयी।
मुगलों की राजकीय भाषा क्या थी?
मुगल साम्राज्य की राजकीय भाषा फारसी थी। मुगल काल में सभी कार्य फारसी भाषा में ही होते थे। अकबर के आदेश से ही बदायूँनी ने रामायण का फारसी भाषा में अनुवाद किया था। इसमें 4 वर्ष का समय लगा था।
बाबर को अपनी उदारता के लिए कौन सी उपाधी दी गई?
मुगल साम्राज्य 1526 में शुरू हुआ, मुगल वंश का संस्थापक बाबर था, अधिकतर मुगल शासक तुर्क और सुन्नी मुसलमान थे. मुगल शासन 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की शुरुआत तक चला और 19 वीं शताब्दी के मध्य में समाप्त हुआ.
भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक क़ाबुल निवासी को एक-एक चांदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था. अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई .
आज भी जब इस स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र किया जाता है तो तात्या टोपे का का नाम जरूर लिया जाता है। तात्या टोपे ने ना सिर्फ अंग्रेजों की नाक में दम करके रखा हुआ था। बल्कि उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित कई राजाओं की मदद भी की थी।
तात्या टोपे का वास्तविक नाम
आज भी जब इस स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र किया जाता है तो तात्या टोपे का का नाम जरूर लिया जाता है। तात्या टोपे ने ना सिर्फ अंग्रेजों की नाक में दम करके रखा हुआ था। बल्कि उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सहित कई राजाओं की मदद भी की थी। वहीं आज हम अपने इस लेख के जरिए स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे के जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलुओं के बारे में आपको जानकारी देने जा रहे हैं।
तात्या टोपे से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी–
पूरा नाम रामचंद्र पांडुरंग येवलकर
उप नाम तात्या टोपे
जन्म स्थान पटौदा जिला, महाराष्ट्र
माता का नाम रुक्मिणी बाई
पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक
पत्नी का नाम –
जन्म तारीख 1814ई।
मृत्यु 18अप्रैल, 1859 (लेकिन संदेह है)
मृत्यु स्थान शिवपुरी, मध्य प्रदेश
पेशा स्वतंत्रता सेनानी
भाषा की जानकारी हिंदी और मराठी
तात्या टोपे का जन्म और परिवार
भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी का जन्म महाराष्ट्र राज्य के एक छोटे से गांव येवला में हुआ था। ये गांव नासिक के निकट पटौदा जिले में स्थित है। वहीं इनका असली नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलकर’ था और ये एक ब्राह्मण परिवार से आते थे। इनके पिता का नाम पाण्डुरंग त्र्यम्बक भट्ट बताया जाता है। जो कि महान राजा पेशवा बाजीराव द्वितीय के यहां पर कार्य करते थे। इतिहास के अनुसार उनके पिता बाजीराव द्वितीय के गृह-सभा के कार्यों को संभालते थे। भट्ट पेशवा बाजीराव द्वितीय के काफी खास लोगों में से एक थे। वहीं तात्या की माता का नाम रुक्मिणी बाई था और वो एक गृहणी थी। तात्या के कुल कितने भाई-बहन थे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
मनुष्य ने सर्वप्रथम किस धातु का प्रयोग किया?
जिस काल में मनुष्य ने पत्थर के औेजारों का प्रयोग किया, उस काल के बाद ताम्र- पाषाणिक काल आया। सर्वप्रथम जिस धातु का को हथियारों/औजारो में प्रयुक्त किया गया वह थी – तांबा। ऐसा माना जाता है कि तांबे का सर्वप्रथम प्रयोग करीब 5000 ई0 पू0 में किया गया। भारत में ताम्र पाषाण काल अवस्था के मुख्य क्षेत्र दक्षिण-पूर्वी राजस्थान, मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिण-पूर्वी भारत में हैं। दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में स्थित बनास घाटी से सूखे क्षेत्रों में अहार एवं गिलुंड नामक स्थानों की खुदाई की गयी। मालवा, एवं एरण स्थानों पर भी खुदाई का कार्य सम्पन्न हुआ जो पश्चिमी मध्य प्रदेश में स्थित है।
परमार वंश का संस्थापक-
परमार एक राजवंश का नाम है और इस युद्ध के महान कवि पद्मगुप्त ने अपनी पुस्तक ‘नवसाहसांकचरित‘ में एक कथा का वर्णन किया है। इस वर्णन के अनुसार ऋषि वशिष्ठ ने ऋषि विश्वामित्र के विरुद्ध युद्ध में सहायता प्राप्त करने के लिये अग्निकुंड से एक वीर पुरुष का निर्माण किया था और इस वीर पुरुष का नाम परमार रखा गया| यही पुरुष परमार वंश का संस्थापक माना जाता है और उसी के नाम पर इस वंश का नाम पड़ा| परंतु कुछ विद्वान परमार वंश के संस्थापक के संबंध में अलग-अलग मत प्रस्तुत करते हैं|
कश्मीर का अकबर
भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे शासक हुए हैं जिनकी नीतियां समकालीन युग से ऊपर उठकर सभी युगों एवं सभी क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं। वैसा ही एक शासक था पंद्रहवीं सदी के कश्मीर का शासक जैनुल आबेदीन। आबेदीन को कश्मीर का अकबर कहा जाता है। आबेदीन पंद्रहवीं सदी में अपने भाई सिकंदर शाह के उत्तराधिकारी के रूप में गद्दी पर बैठा।
देश में कलिंग पुरस्कार कब शुरू किया गया?
कलिंग पुरस्कार विज्ञान संचार के क्षेत्र में किसी बड़े योगदान के लिए दिया जाता है। ऐसा काम जो आम लोगों की समझ में विज्ञान को आसान कर सके, विज्ञान-संचार के अन्तर्गत आता है। विजेता को दस हजार स्टर्लिंग पाउंड और यूनेस्को का अलबर्ट आईनस्टीन रजत-पदक प्रदान किया जाता है। अब विजेता को रूचि राम साहनी चेयर भी प्रदान की जाती है जिसे भारत सरकार ने कलिंग पुरस्कार की पचासवीं जयंती पर संकल्पित किया है। यह पुरस्कार द्विवार्षिक है और विश्व विज्ञान दिवस पर १० नवम्बर को प्रदान किया जाता है। उड़ीसा के भूतपूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक ने एक युगद्रष्टा की भूमिका अपनाते हुए इस पुरस्कार के लिए यूनेस्को को मुक्त हस्त से १९५२ मे ही एक बड़ी धनराशि दान कर दी थी। वे भारत के कलिंग फाउण्डेशन ट्रस्ट के संस्थापक थे। इसी से यह पुरस्कार आरम्भ हुआ। भारत से अभी तक इस सम्मान से सम्मानित लोगों की सूची निम्नवत है - 1963 - जगजीत सिंह 1991 - नरेंद्र के सहगल 1996 - जयंत नार्लीकर 1997 - डी बाला सुब्रमन्यियन 2009 - प्रोफेसर यशपाल
पालवंश का संस्थापक
पाल राजवंश स्थापना गोपाल ने आठवीं शताब्दी के मध्य में किया था। पाल राजवंश मध्यकालीन भारत का एक महत्वपूर्ण राजवंश था। इस इस राजवंश ने बिहार और अखण्डित बंगाल पर लगभग 750 ई से 1174 ई तक शासन किया था। इस राजवंश का साम्राज्य कन्नौज, उत्तर प्रदेश तथा उत्तर भारत तक फैला हुआ था।
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